आभूषण धारण करने से पूर्व बरतें सावधानी.........

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आभूषण धारण करने से पूर्व बरतें सावधानी.......



स बात में तनिक भी संदेह नहीं कि आभूषण हमारे व्यक्तित्व में चार- चाँद लगाते हैं. पर इनसे होने वाली परेशानियों को नज़र अंदाज़ करना उचित नहीं . आभूषणों से होने वाले त्वचा के विकारों की सब से सरल पहचान यह है कि उन का असर प्राय: उसी अंग तक सीमित रहता है, जिस के ये सीधे संपर्क में आते हैं . उदाहरण के लिए , कंठमाला से तकलीफ होती है , तो गले पर ही डर्मेटाइटिस या आर्टिकेरिया के लक्षण उभरते हैं, अंगूठी का असर उंगली पर ही होता है , कांटों या बालियों का कष्ट कानों को ही उठाना पड़ता है , कड़े और चूड़ियां बांहों पर असर दिखाते हैं, बिछिया से पैरों की उंगलियों में तकलीफ हो सकती है. यहाँ तक की कलाई पर पहनी हुई घड़ी भी कई लोगों को तकलीफ दे सकती है. ऐसी तकलीफें सिर्फ  आर्टिफीशियल आभूषणों के साथ हो , यह भी आवश्यक नहीं . स्वर्णकारों द्वारा आभूषणों के निर्माण में इस्तेमाल किया जाने वाला शुद्ध सोना , 18 कैरेट और 14 केरेट सोना जिसमें निकल, तांबा, जस्ता और चाँदी मिली रहती है , 'ज्वेलर्स मेटल'  जिसमें टिन, तांबा और जस्ता मिला होता है , पेलैडियम, प्लेटिनम और खास कर निकल सभी कष्ट्कारी साबित हो सकते हैं.



प्रश्न महंगे या सस्ते आभूषणों का नहीं है. सभी धातुओं में निकल अधिक एलर्जीकारक है इसलिए आर्टिफीशियल ज्वेलरी सार्वधिक बदनाम हैं. परंतु  समस्या प्लेटिनम में गढ़े गए महंगे आभूषणों के साथ भी हो सकती है.  शुद्ध स्वर्ण आभूषणों के साथ एलर्जी के मामले कम  होते हैं  लेकिन सोना चूंकि बहुत पहना जाता है इसलिए प्रभावित होने वाले लोगों की कुल संख्या काफी बड़ी है.

आभूषण बनाने में  काम आने वाली सभी धातुओं में सब से निर्मल चाँदी है. सच यह है कि शुद्ध चाँदी से बने आभूषण कभी एलर्जी उत्पन्न नहीं करते . हाँ, चाँदी में यदि मिलावट हो तो , यह चाँदी का दोष नहीं.

यदि अंगूठियों की बात करें तो, शुद्ध सोने की अंगूठी पहनने पर डर्मेटाइटिस के ममले बहुत कम होते हैं. पर सफेद सोना जिस में 58 प्रतिशत सोना, 5-17 प्रतिशत निकल, 2 प्रतिशत जस्ता और शेष तांबा होता है, के साथ एलर्जी जन्य डर्मेटाइटिस होने की संभावना अधिक होती है. पेलैडियम या प्लेटिनम से बनी अंगूठियाँ भी परेशानी उत्पन्न कर सकती हैं. लेकिन पीला या हरापीला सोना निकल से मुक्त होता है और इसलिए सामान्यत: तंग नहीं करता .

अंगूठियों के साथ त्वाकशोथ ( डर्मेटाइटिस ) होने पर कुछ अन्य प्रेरक चीज़ों के प्रति सावधानी बरतनी आवश्यक है. अगर अंगूठी के नीचे साबुन , रसायन , गंदगी या बैक्टीरिया जमा हो जाए या बारबार चोट लगती रहे तब भी त्वाकशोथ अर्थात डर्मेटाइटिस उत्पन्न हो सकता है.

कुछ लोगों के उंगली की त्वचा पर इस बार-बार के प्रहार से दाने भी निकल सकते हैं और कुछ की त्वचा पर काले मानचित्र से उभर आते हैं. यह विकार ब्लैक डर्मोग्राफिज़्म कहलाता है. पसीने में उपस्थित सल्फाइड और क्लोराइड अणु भी धातुओं से मिल कर त्वचा का रंग बिगाड़ सकते हैं.

इसके अलावा कांटेक्ट डर्मेटाइटिस  होने पर आभूषण के संपर्क में रहने वाले अंग में सूजन आ जाती है . त्वचा दहक कर लाल हो सकती है . उस पर पानी से भरे दाने उठ सकते हैं . उन से पानी रिस सकता है. पपड़ी जम सकती है . त्वचा का कोमलपन नष्ट हो सकता है. त्वचा खुरदरी और मोटी हो जाती है. संक्रमण हो जाने पर मवाद भी पड़ सकती है. उस हिस्से में खूब खुजली मचती है . जलन होती है . कभी लगता है जैसे डंक लगा हो . पित्ती ( कांटेक्ट आर्टिकेरिया) होने पर त्वचा सूज जाती है , उस पर किसी भी रुप - आकार के ददोरे उत्पन्न हो जाते हैं , जिसमें खुजली होती है.
क्षोभक ( इरिटेंट ) डर्मेटाइटिस  में भी शरीर के पीड़ित अंग में दाने उठ जाते हैं . खुजली होती है लेकिन ब्लैक डर्मोगाफिज़्म में त्वचा का रंग ही बिगड़ता है . उस पर काले रंग का नक्शा सा खिंच जाता है.

यदि आपकी त्वचा पर कभी भी एलर्जी उभरे तो उस की वास्तविकता को समझने में देर न करें. सब से बेहतर होगा कि किसी योग्य डर्मेटोलॉजिस्ट से सलाह लें और विकार की पुष्टि होने पर इस समस्या को पैदा करने वाले आभूषणों का परित्याग कर दें . अगर त्वचा पर बैक्टीरिया के संक्रमण के लक्षण हैं तो डॉक्टर अन्य दवाओं के साथ एंटिबायोटिक मरहम लगाने का परामर्श भी दे सकते हैं.

एलर्जी से छुट्कारा दिलाने में स्टीरायड दवाएं प्रभावी साबित होती हैं. अधिक उग्र मामलों में इन्हें कुछ दिनों तक मुंह से लेना पड़ सकता है . पर पीड़ित अंग पर डॉक्टर के निर्देशन पर स्टीरायड क्रीम लगाने से भी लाभ पहुंचता है.

इसके अतिरिक्त जिस धातु से परेशानी हुई है , उससे आगे से परहेज बरतना ही हितकर है. परंतु यदि समस्या अंगूठी के नीचे साबुन, केमिकल, गंदगी या बैक्टीरिया जमा होने से जुड़ी हो तो कुछ दिनों बाद आभूषण दोबारा भी पहना जा सकता है . पर यह सावधानी बरतना ज़रुरी हो जाता है कि आगे वे परिस्थितियाँ पुन: उत्पन्न न हों , जिनके कारण पहले समस्या हुई थी.

आभूषण धारण करने पर यदि पाबंदी भी लग जाए तो भी मन छोटा न करें . वैसे भी जिसे खुदा ने ही खूबसूरती से नवाज़ा हो उसे किसी आभूषण की क्या आवश्यकता . आखिर चाँद भी तो बिन आभूषण अपनी खूबसूरती की चमक चारो ओर बिखेरता है.



-  स्वप्निल शुक्ला
  ज्वेलरी डिज़ाइनर
  फ़ैशन कंसलटेंट




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Comments

  1. Anuradha Mittal30 March 2014 at 04:50

    wow ..lovely read . thanks

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  2. Thanks for sharing such informative article . congrats

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